Rent Agreement – भारत में हर कोई कभी न कभी किराए के मकान में जरूर रहा होता है। चाहे पढ़ाई के लिए शहर बदला हो, नौकरी की वजह से ट्रांसफर हुआ हो या फिर नया कारोबार शुरू करने के लिए कहीं और जाना पड़ा हो। ऐसे में मकान मालिक और किरायेदार दोनों के बीच किसी भी गलतफहमी से बचने के लिए रेंट एग्रीमेंट यानी किरायानामा बनवाया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि रेंट एग्रीमेंट ज्यादातर मामलों में सिर्फ 11 महीने का ही क्यों होता है? 12 या 24 महीने का क्यों नहीं?
इस सवाल का जवाब भारत के एक पुराने कानून में छिपा है – The Registration Act, 1908। इस कानून के मुताबिक अगर कोई किरायानामा 12 महीने या उससे ज्यादा के लिए बनता है, तो उसे रजिस्टर करवाना अनिवार्य होता है। यानी आपको स्टांप ड्यूटी, रजिस्ट्रेशन फीस और कई तरह की कानूनी औपचारिकताओं का सामना करना पड़ेगा। वहीं 11 महीने के लिए बने रेंट एग्रीमेंट को रजिस्टर करवाना अनिवार्य नहीं होता, जिससे समय और पैसे दोनों की बचत होती है।
क्या होता है रेंट एग्रीमेंट?
रेंट एग्रीमेंट एक लीगल डॉक्यूमेंट होता है जिसमें मकान मालिक (landlord) और किरायेदार (tenant) के बीच तय की गई शर्तें लिखी जाती हैं। इसमें यह दर्ज होता है कि किराया कितना होगा, कब देना है, कौन-सी जिम्मेदारी किसकी होगी, कितना सिक्योरिटी डिपॉजिट लिया गया है, मकान कितने समय के लिए किराए पर दिया गया है, और मकान छोड़ने का क्या नियम होगा।
सिर्फ 11 महीने का ही क्यों होता है रेंट एग्रीमेंट?
जैसा कि ऊपर बताया गया, अगर कोई एग्रीमेंट 12 महीने या उससे ज्यादा का होता है तो उसे कानूनी रूप से रजिस्टर करवाना जरूरी होता है। इसमें शामिल होता है:
- स्टांप ड्यूटी (जो राज्य के हिसाब से अलग होती है)
- रजिस्ट्रेशन फीस
- अधिक औपचारिकताएं और समय
इन सब झंझटों से बचने के लिए ज्यादातर मकान मालिक और किरायेदार आपसी सहमति से 11 महीने का एग्रीमेंट बनाते हैं और जरूरत पड़ने पर इसे हर साल रिन्यू कर लेते हैं।
रेंट एग्रीमेंट के कानूनी फायदे
- कानूनी सुरक्षा: एग्रीमेंट होने पर कोई पक्ष मनमानी नहीं कर सकता। यदि विवाद होता है, तो ये डॉक्यूमेंट कोर्ट में एक मजबूत सबूत बनता है।
- भविष्य के लिए सबूत: किराए की रकम, समय, डिपॉजिट और बाकी शर्तों का सबूत बना रहता है।
- टैक्स में मदद: नौकरीपेशा लोग HRA क्लेम करने के लिए रेंट एग्रीमेंट का इस्तेमाल करते हैं।
एग्रीमेंट बनवाते समय किन बातों का ध्यान रखें?
1. किराया और भुगतान की शर्तें साफ हों
किराया कितने तारीख को देना है, अगर देर हुई तो क्या पेनल्टी लगेगी – ये सभी बातें स्पष्ट होनी चाहिए।
2. सिक्योरिटी डिपॉजिट का जिक्र हो
डिपॉजिट कितना है, कब वापस मिलेगा, अगर कटौती होती है तो किन कारणों से होगी – ये सब भी लिखना जरूरी है।
3. नोटिस पीरियड और लॉक-इन पीरियड
कम से कम 30 दिन का नोटिस दोनों पक्षों के लिए अनिवार्य होना चाहिए। अगर लॉक-इन पीरियड है तो वह भी जरूर लिखा हो ताकि बीच में कोई मकान खाली न कर सके।
4. मरम्मत और मेंटेनेंस
कौन क्या मरम्मत करवाएगा, मेंटेनेंस चार्ज कौन देगा – ये बातें भी पहले से तय करें।
5. किराया बढ़ाने की शर्तें
अगर मकान मालिक हर साल किराया बढ़ाना चाहता है तो कितने प्रतिशत तक बढ़ा सकता है, ये एग्रीमेंट में लिखा होना चाहिए।
गैरवाजिब शर्तों से बचें
कई बार एग्रीमेंट में ऐसी शर्तें डाल दी जाती हैं जो तर्कहीन होती हैं, जैसे –
- सिर्फ शाकाहारी किरायेदार चाहिए
- पालतू जानवर नहीं रखने देना
- किसी खास धर्म या जाति को मकान न देना
ऐसी शर्तें गलत हैं और इनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
क्या रजिस्टर करवाना जरूरी है?
अगर आप एग्रीमेंट 11 महीने से ज्यादा का बना रहे हैं, तो रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है। रजिस्ट्रेशन के बिना यह डॉक्यूमेंट कानूनी रूप से वैध नहीं माना जाएगा। लेकिन अगर एग्रीमेंट 11 महीने का है तो रजिस्ट्रेशन जरूरी नहीं होता, हालांकि चाहें तो रजिस्टर्ड भी करवा सकते हैं।
ऑनलाइन रेंट एग्रीमेंट भी विकल्प है
आजकल कई राज्य सरकारों और प्राइवेट सर्विस प्रोवाइडर्स के माध्यम से ऑनलाइन रेंट एग्रीमेंट की सुविधा उपलब्ध है। आप घर बैठे एग्रीमेंट तैयार करवा सकते हैं और उसे डिजिटल साइन करके ईमेल या वॉट्सऐप पर शेयर कर सकते हैं।
भारत में 11 महीने का रेंट एग्रीमेंट बनाना केवल एक ट्रिक नहीं, बल्कि कानूनी ढांचे के अनुसार एक समझदारी भरा फैसला है। इससे न सिर्फ पैसे की बचत होती है बल्कि कानूनी झंझटों से भी छुटकारा मिलता है। चाहे आप मकान मालिक हों या किरायेदार, हर किसी को एग्रीमेंट बनवाने से पहले इसकी शर्तें अच्छे से पढ़ लेनी चाहिए और कोई भी बात अधूरी न छोड़ें।