Property Division Act – परिवार में प्रॉपर्टी को लेकर विवाद होना कोई नई बात नहीं है। लेकिन जब बात वसीयत (Will) की आती है, तो मामला और पेचीदा हो जाता है। बहुत बार देखा गया है कि माता-पिता द्वारा तैयार की गई वसीयत में किसी एक बेटे या बेटी को ज्यादा और बाकी को कम हिस्सा दे दिया जाता है। इससे कई बार भाई-बहनों के बीच मनमुटाव हो जाता है।
अब सवाल ये उठता है कि क्या वसीयत को सिर्फ इसलिए अदालत में चुनौती दी जा सकती है क्योंकि उसमें बराबर हिस्सा नहीं मिला? या फिर इसके लिए कुछ पक्के कानूनी आधार भी होने चाहिए? आइए इस पूरे मामले को समझते हैं आसान और कैजुअल भाषा में।
वसीयत क्या होती है और इसका क्या महत्व है?
वसीयत एक ऐसा कानूनी दस्तावेज है जिसमें कोई भी व्यक्ति अपनी संपत्ति को अपनी मर्जी से किसी को भी सौंप सकता है। इसका मतलब ये नहीं है कि वसीयत हमेशा परिवार के सदस्यों में बराबर बंटवारे के हिसाब से बनाई जाए। वसीयत बनाने वाले (वसीयतकर्ता) को पूरा हक होता है कि वो किसे कितना हिस्सा देना चाहता है।
लेकिन अगर वसीयत बनाते समय किसी प्रकार की गड़बड़ी होती है—जैसे धोखाधड़ी, दबाव, जबरदस्ती या मानसिक अस्थिरता—तो वसीयत को कानूनी तौर पर चैलेंज किया जा सकता है।
क्या सिर्फ बराबर हिस्सा न मिलने से वसीयत रद्द हो सकती है?
नहीं, सिर्फ इतना कहना कि वसीयत में आपको कम हिस्सा मिला है, कोर्ट में वसीयत को रद्द करवाने के लिए पर्याप्त नहीं है। आपको कोर्ट में यह साबित करना होगा कि वसीयत या तो गलत तरीके से बनाई गई थी, या फिर किसी धोखे, दबाव या मानसिक कमजोरी के चलते बनाई गई थी।
अगर वसीयत बिल्कुल सही प्रक्रिया के तहत, बिना किसी दबाव के बनाई गई है, तो कोर्ट उसे मान्यता देता है—even अगर उसमें सबको बराबर हिस्सा न मिला हो।
वसीयत को चैलेंज करने के कानूनी आधार
- मानसिक रूप से अस्थिर होना – अगर वसीयतकर्ता जब वसीयत बना रहा था, तब उसकी मानसिक स्थिति सही नहीं थी, तो वसीयत को चुनौती दी जा सकती है।
- दबाव या डर के कारण बनाई गई हो – अगर कोई व्यक्ति वसीयतकर्ता पर दबाव डालकर वसीयत बनवाता है, तो वो वसीयत अवैध मानी जाती है।
- हस्ताक्षर या दस्तावेज फर्जी होना – अगर दस्तावेज पर हस्ताक्षर जाली हैं या किसी तरह की छेड़छाड़ की गई है, तो वह वसीयत कोर्ट में टिक नहीं पाएगी।
- फर्जी गवाह – अगर वसीयत के समय जो गवाह मौजूद थे, उनकी विश्वसनीयता संदिग्ध है, तो भी मामला कमजोर पड़ सकता है।
पंजीकृत बनाम अपंजीकृत वसीयत
वसीयत को रजिस्टर कराना जरूरी नहीं होता, लेकिन रजिस्टर्ड वसीयत को अदालत में चुनौती देना थोड़ा मुश्किल होता है। हालांकि, रजिस्टर्ड वसीयत को भी गलत साबित किया जा सकता है—अगर आपके पास पुख्ता सबूत हों।
वसीयत को चुनौती देने की प्रक्रिया
- अदालत में केस दर्ज कराएं
- एक अच्छे वकील की मदद लें
- सबूत इकट्ठा करें – जैसे मेडिकल रिपोर्ट, गवाहों के बयान, दस्तावेजों की जांच आदि
- कोर्ट में अपना पक्ष मजबूती से रखें
बिना वसीयत के प्रॉपर्टी का क्या होता है?
अगर कोई व्यक्ति बिना वसीयत के गुजर जाता है या वसीयत को कोर्ट रद्द कर देता है, तो संपत्ति का बंटवारा ‘उत्तराधिकार कानून’ के अनुसार होता है। हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी सभी के अलग-अलग उत्तराधिकार कानून होते हैं, जिनके तहत परिवार के सदस्य संपत्ति में हिस्सा पाने के हकदार होते हैं।
क्या वसीयत को रद्द करवाना आसान है?
नहीं, लेकिन नामुमकिन भी नहीं है। अगर वसीयत में सचमुच कुछ गड़बड़ी है और आपके पास सही कानूनी आधार व सबूत हैं, तो कोर्ट में जीतने के चांस अच्छे होते हैं। लेकिन अगर सिर्फ इतना है कि आपको कम हिस्सा मिला है और वसीयत कानून के हिसाब से वैध है, तो उसे चैलेंज करना बेकार होगा।
वकील की सलाह क्यों जरूरी है?
हर केस की अपनी अलग कहानी होती है। हो सकता है कि आपके पास मजबूत आधार हो, लेकिन आपको यह जानने के लिए एक अनुभवी वकील की जरूरत पड़ेगी। वकील ही आपको बताएगा कि आपके पास वसीयत को चैलेंज करने के लिए कानूनी ग्राउंड हैं या नहीं।
अगर आपको लगता है कि वसीयत आपके खिलाफ गई है और उसमें कोई गड़बड़ी है, तो घबराइए मत। भारतीय कानून में ऐसे कई प्रावधान हैं जो आपको न्याय दिला सकते हैं। लेकिन याद रखें, सिर्फ असंतोष की वजह से वसीयत को चुनौती नहीं दी जा सकती। मजबूत सबूत और कानूनी समझ जरूरी है।