EMI Bounce Update – आजकल लोन लेकर समय पर ईएमआई न भर पाने की समस्या आम होती जा रही है। खासतौर पर कोविड के बाद लोगों की आर्थिक स्थिति पर गहरा असर पड़ा है और बहुत से लोग अब भी अपने लोन की किश्तें समय पर नहीं चुका पा रहे हैं। ऐसे में जब बैंक कड़ा रुख अपनाते हैं तो आम जनता के लिए हालात और मुश्किल हो जाते हैं। लेकिन हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है जो लोन डिफॉल्ट करने वाले लाखों लोगों के लिए राहत की खबर लेकर आया है।
क्या है मामला और कोर्ट ने क्या कहा
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि कोई भी सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक यानी सरकारी बैंक किसी व्यक्ति के खिलाफ सिर्फ लोन डिफॉल्ट के कारण लुकआउट सर्कुलर यानी एलओसी जारी नहीं कर सकता। कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि ये अधिकार सिर्फ कानून प्रवर्तन एजेंसियों के पास होना चाहिए। बैंकों को इस तरह का अधिकार देना संविधान और न्यायिक प्रक्रिया के खिलाफ है।
इस फैसले का मतलब ये है कि अगर आपने किसी वजह से लोन नहीं चुका पाया है और बैंक ने आपके खिलाफ एलओसी जारी कर दिया है तो अब वो अमान्य माना जाएगा। इसका असर सबसे पहले आपके ट्रैवल राइट्स पर पड़ेगा क्योंकि एलओसी लगने के बाद व्यक्ति देश से बाहर नहीं जा सकता था। लेकिन अब कोर्ट ने इस प्रवृत्ति पर रोक लगा दी है।
क्या है लुकआउट सर्कुलर यानी LOC
लुकआउट सर्कुलर एक तरह का नोटिस होता है जो देश के बाहर जाने से रोकता है। आम तौर पर इसका इस्तेमाल पुलिस, सीबीआई जैसी जांच एजेंसियां करती हैं ताकि किसी आरोपी को भागने से रोका जा सके। लेकिन कुछ वर्षों से बैंक भी बड़े लोन डिफॉल्टर्स के खिलाफ एलओसी जारी करने लगे थे ताकि वो देश से भाग न सकें। खासकर जब नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे केस सामने आए तो बैंकों ने इस अधिकार का इस्तेमाल तेजी से किया।
सरकार का क्या तर्क था
सरकार की तरफ से कोर्ट में ये दलील दी गई कि अगर कोई व्यक्ति बहुत बड़ी रकम का डिफॉल्टर है और देश छोड़कर भागने की संभावना है तो बैंक को एलओसी जारी करने का अधिकार मिलना चाहिए। लेकिन कोर्ट ने सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया और कहा कि सिर्फ आशंका के आधार पर किसी की आजादी छीनी नहीं जा सकती।
लोन डिफॉल्ट कोई अपराध नहीं है
हाईकोर्ट ने इस फैसले में यह भी साफ किया कि लोन चुकाना एक नागरिक जिम्मेदारी है न कि आपराधिक मामला। सिर्फ इसलिए कि कोई व्यक्ति लोन नहीं चुका पाया इसका मतलब यह नहीं है कि उसे देश छोड़ने से रोका जाए या उस पर अपराधिक सख्ती की जाए। बशर्ते कि उसने धोखाधड़ी नहीं की हो।
किन लोगों को मिलेगी सबसे ज्यादा राहत
इस फैसले से सबसे ज्यादा फायदा उन लोगों को होगा जो या तो छोटे व्यवसायी हैं या फिर मध्यमवर्गीय लोग हैं जिन्हें मजबूरी में लोन लेना पड़ा और बाद में परिस्थितियों की वजह से वो चुका नहीं सके। ऐसे लाखों लोग हैं जो अब तक बैंक के डर से विदेश यात्रा नहीं कर पा रहे थे या जिन पर LOC लगा हुआ था।
बैंक अब क्या कर सकते हैं
इसका मतलब ये नहीं है कि अब बैंक लोन वसूल नहीं कर पाएंगे। बैंक अभी भी SARFAESI Act और DRT (ऋण वसूली न्यायाधिकरण) जैसी कानूनी प्रक्रियाओं के जरिए अपना पैसा वसूल सकते हैं। वो उधारकर्ता की संपत्ति को कुर्क कर सकते हैं या सिविल केस फाइल कर सकते हैं। लेकिन अब एलओसी जैसे कठोर कदम उठाने से पहले उन्हें अदालत की अनुमति लेनी होगी।
क्या यह फैसला सभी बैंकों पर लागू होगा
हां यह फैसला सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर लागू होगा यानी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा जैसे सभी सरकारी बैंकों को अब कोर्ट की इस गाइडलाइन का पालन करना होगा। हालांकि प्राइवेट बैंकों पर भी यह फैसला मार्गदर्शक की तरह लागू किया जा सकता है क्योंकि मौलिक अधिकारों की बात सभी नागरिकों पर लागू होती है।
क्या वाकई लोगों को राहत मिलेगी
यह फैसला उन लोगों के लिए राहत है जो ईमानदारी से लोन चुकाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन हालात की वजह से पिछड़ गए। अब वो बिना डर के बैंक से बात कर सकते हैं, लोन रिस्ट्रक्चर करवा सकते हैं या नए विकल्प तलाश सकते हैं। साथ ही यह फैसला यह भी सुनिश्चित करता है कि सरकार और बैंक नागरिक अधिकारों का सम्मान करें।
छात्रों और विदेश में काम करने वालों को भी फायदा
यह फैसला छात्रों और उन लोगों के लिए भी राहत है जो विदेश जाकर पढ़ाई या नौकरी करना चाहते हैं लेकिन किसी पुराने लोन डिफॉल्ट की वजह से डर के माहौल में थे। अब उन्हें यह डर नहीं रहेगा कि पासपोर्ट रोका जाएगा या एयरपोर्ट पर रोक लिया जाएगा।
हम क्या सीख सकते हैं इस फैसले से
सबसे बड़ी बात यह है कि कानून और कोर्ट लोगों की स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा के लिए हैं। बैंकों को भी अब यह समझना होगा कि कर्ज वसूली का मतलब यह नहीं है कि किसी की जिंदगी पर प्रतिबंध लगा दिया जाए। हां अगर कोई जानबूझकर धोखा दे रहा है तो उस पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
बॉम्बे हाईकोर्ट का यह फैसला भारत की न्याय व्यवस्था में एक ऐतिहासिक कदम है। यह केवल एक तकनीकी मामला नहीं बल्कि नागरिक स्वतंत्रता और संविधान के अधिकारों का प्रश्न था। यह फैसला न सिर्फ आर्थिक रूप से परेशान लोगों को राहत देता है बल्कि आने वाले समय में सरकार और बैंकों को भी ज्यादा संवेदनशील और कानूनसम्मत तरीके अपनाने के लिए प्रेरित करता है।