Bank Closed – अगर आपका भी पैसा HPL को-ऑपरेटिव बैंक में जमा है, तो यह खबर आपके लिए बेहद जरूरी है। हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने एचपीएल को-ऑपरेटिव बैंक का लाइसेंस रद्द कर दिया है। अब सवाल ये उठता है कि ऐसा क्यों किया गया, जमाकर्ताओं के पैसे का क्या होगा और आगे क्या प्रक्रिया रहेगी? चलिए आपको सरल भाषा में पूरी जानकारी देते हैं।
RBI ने क्यों उठाया ये कदम?
RBI ने बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1949 के तहत यह कदम उठाया है। इस एक्ट के मुताबिक, यदि कोई बैंक वित्तीय रूप से कमजोर हो जाता है और ग्राहकों के हितों को खतरा होता है, तो RBI उसका लाइसेंस रद्द कर सकता है।
एचपीएल को-ऑपरेटिव बैंक के मामले में भी यही हुआ है। बैंक ना तो न्यूनतम पूंजी आवश्यकता को पूरा कर पा रहा था और ना ही उसके पास इतनी कमाई की संभावना थी कि वह अपने खर्च चला सके।
बैंक बंद, अब क्या होगा?
आरबीआई ने 19 मई की शाम से ही बैंक का संचालन पूरी तरह से बंद करवा दिया है। इसका मतलब है कि अब इस बैंक से आप कोई लेन-देन नहीं कर सकते। न तो आप पैसा निकाल सकते हैं और न ही जमा कर सकते हैं।
जमाकर्ताओं को घबराने की जरूरत नहीं
अगर आपने इस बैंक में पैसा जमा किया है तो घबराइए मत। आपके पैसों की सुरक्षा के लिए Deposit Insurance and Credit Guarantee Corporation (DICGC) नाम की एक सरकारी एजेंसी है। यह एजेंसी बैंक डूबने की स्थिति में जमाकर्ताओं को बीमा राशि देती है।
कितनी राशि तक सुरक्षित है आपका पैसा?
DICGC के नियमों के अनुसार, किसी भी एक बैंक में जमा कुल राशि पर अधिकतम ₹5 लाख तक का बीमा कवर मिलता है। इसका मतलब है कि अगर आपने बैंक में ₹5 लाख या उससे कम जमा कर रखे हैं, तो आपको पूरी राशि वापस मिल जाएगी।
यह ₹5 लाख में आपकी जमा राशि के साथ-साथ ब्याज भी शामिल होता है। अगर किसी व्यक्ति के उस बैंक में कई खाते हैं, तो भी कुल मिलाकर 5 लाख की ही गारंटी होती है।
RBI का क्या कहना है?
RBI का कहना है कि एचपीएल को-ऑपरेटिव बैंक के 98.69% जमाकर्ता पूरी तरह से DICGC बीमा कवर के तहत आते हैं। यानी ज्यादातर लोगों को उनका पूरा पैसा मिल जाएगा।
इतना ही नहीं, DICGC ने अब तक करीब ₹21.24 करोड़ रुपये का भुगतान भी कर दिया है। इसका मतलब है कि इस प्रक्रिया की शुरुआत हो चुकी है और ग्राहकों को धीरे-धीरे उनका पैसा लौटाया जा रहा है।
लिक्विडेटर की होगी नियुक्ति
बैंक को बंद करने के बाद अगला कदम होता है Liquidator की नियुक्ति। यह व्यक्ति बैंक की सभी संपत्तियों का मूल्यांकन करता है और बची हुई राशि को ग्राहकों और अन्य लेनदारों में बांटता है।
आरबीआई ने उत्तर प्रदेश सरकार के सहकारी विभाग से लिक्विडेटर नियुक्त करने की सिफारिश की है। एक बार लिक्विडेटर नियुक्त हो जाने के बाद बैंक की परिसंपत्तियों की बिक्री शुरू होगी और जिन ग्राहकों की राशि 5 लाख से ज्यादा है, उन्हें आगे की प्रक्रिया के तहत पैसा लौटाया जाएगा।
ग्राहकों को क्या करना चाहिए?
- धैर्य रखें – घबराने की जरूरत नहीं है। प्रक्रिया थोड़ी लंबी हो सकती है लेकिन आपका पैसा सुरक्षित है।
- अपने दस्तावेज तैयार रखें – जैसे पासबुक, पहचान पत्र, PAN कार्ड, बैंक स्टेटमेंट आदि।
- DICGC और RBI की वेबसाइट पर नजर रखें – समय-समय पर अपडेट्स आते रहते हैं।
- किसी अफवाह पर भरोसा न करें – सोशल मीडिया पर चल रही झूठी खबरों से दूर रहें।
क्या सीखा जा सकता है इस घटना से?
भारत में ऐसे कई को-ऑपरेटिव बैंक हैं जो ठीक तरह से काम नहीं कर रहे। ऐसे में हमें अपनी मेहनत की कमाई किसी भी छोटे और अनजान बैंक में रखने से पहले अच्छी तरह जांच पड़ताल कर लेनी चाहिए।
- हमेशा ऐसा बैंक चुनें जो RBI द्वारा मान्यता प्राप्त हो।
- कोशिश करें कि आपकी अधिकांश रकम सरकारी या राष्ट्रीयकृत बैंकों में हो।
- अगर को-ऑपरेटिव बैंक में पैसा रखना ही है, तो सीमा में रखें – यानी ₹5 लाख से ज्यादा नहीं।
एचपीएल को-ऑपरेटिव बैंक का लाइसेंस रद्द होना उन जमाकर्ताओं के लिए झटका जरूर है, लेकिन गनीमत ये है कि DICGC के कारण उनका पैसा सुरक्षित है। RBI की इस कार्रवाई से ये भी साफ हो गया है कि अब कमजोर और नियमों की अनदेखी करने वाले बैंकों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जा रहे हैं।
आपको जरूरत है सिर्फ सतर्क और जागरूक रहने की। अपने बैंकिंग विकल्पों को सोच-समझकर चुनें और सरकारी संस्थाओं से मिलने वाली जानकारी पर ही भरोसा करें।